शुक्रवार 19 दिसंबर 2025 - 13:35
माता-पिता की कुछ बड़ी गलतियाँ, जो बच्चों के झगड़ों को और बढ़ा देती हैं!

हौज़ा / भाई बहनों के बीच झगड़ा और आपसी प्रतिस्पर्धा बिल्कुल स्वाभाविक बात है। न तो हम इसे पूरी तरह खत्म कर सकते हैं और न ही ऐसा करना चाहिए। असल और अहम बात यह है कि स्वाभाविक प्रतिस्पर्धा और नुकसानदेह झगड़े के बीच फर्क को पहचाना जाए।

हौज़ा न्यूज़ एजेंसी के अनुसार ,बच्चों का झगड़ा कब स्वाभाविक होता है और कब नुकसानदेह?

जैसा कि पहले भी इशारा किया गया, भाई-बहनों के बीच झगड़ा और मुकाबला बिल्कुल स्वाभाविक है। न तो हम इसे पूरी तरह समाप्त कर सकते हैं और न ही ऐसा करना चाहिए। असली और महत्वपूर्ण बिंदु यह है कि स्वाभाविक प्रतिस्पर्धा और हानिकारक झगड़े के बीच अंतर को समझा जाए।

स्वाभाविक प्रतिस्पर्धा क्या है?

वे झगड़े जिनमें गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान न हो, स्वाभाविक प्रतिस्पर्धा के दायरे में आते हैं। बच्चों की उम्र, भावनात्मक स्थिति और विकास की आवश्यकताओं के अनुसार यह सामान्य बातें हैं कि,कभी-कभी हल्की-फुल्की शारीरिक झड़प हो जाए (जैसे बाल खींच लेना या हल्का सा धक्का देना)

किसी बच्चे को गुस्सा आ जाए, वह नाराज़ हो जाए या रो पड़े

यह सब बातें बच्चों के लिए आपसी संबंध, सहनशीलता और भावनाओं पर नियंत्रण सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा हैं और आम तौर पर अधिक चिंता की बात नहीं होतीं।

नुकसानदेह झगड़ा क्या है?

जब यह प्रतिस्पर्धा अपनी स्वाभाविक सीमा से निकलकर पूरी लड़ाई में बदल जाए, तो यह सामान्य बात नहीं रहती। ऐसे नुकसानदेह झगड़ों की कुछ स्पष्ट निशानियाँ होती हैं:

गंभीर शारीरिक नुकसान: तीव्र मारपीट, जिससे वास्तविक चोट का खतरा हो

अत्यधिक आक्रामक व्यवहार: जब बच्चे अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण खो बैठें

मौखिक हिंसा: गालियाँ देना, अपमानजनक और तकलीफदेह शब्दों का प्रयोग

खतरनाक हरकतें: एक-दूसरे पर चीज़ें फेंकना या कोई अन्य जोखिमभरा काम करना

माता-पिता के रूप में हमें इन सीमाओं को अच्छी तरह समझना चाहिए। हमारा उद्देश्य स्वाभाविक झगड़ों को खत्म करना नहीं, बल्कि उन्हें इस हद तक बढ़ने से रोकना है कि वे बच्चों की व्यक्तित्व-निर्मिति और मानसिक स्वास्थ्य को लंबे समय तक नुकसान न पहुँचाएँ।

बच्चों के झगड़ों पर कब चिंतित होना चाहिए?

यदि बच्चों की लड़ाई में अधिक गंभीर व्यवहार और नुकसान दिखाई दें, तो यह माता-पिता के लिए एक गंभीर चेतावनी है।

स्वाभाविक और स्वस्थ झगड़े की पहचान:

कोई गंभीर शारीरिक या मानसिक नुकसान न हो

हल्का-फुल्का शारीरिक टकराव हो सकता है (जैसे मामूली धक्का)

अस्थायी नाराज़गी, गुस्सा या रोना दिखाई दे सकता है

ये सब अपेक्षित हैं और सामाजिक व्यवहार सीखने की प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा हैं।

अस्वस्थ और नुकसानदेह झगड़ों की खतरनाक निशानियाँ:

जब झगड़ा इन सीमाओं से आगे बढ़ जाए, तो उसे मामूली नहीं समझना चाहिए, जैसे:

1) गंभीर हिंसा

मौखिक हिंसा (गालियाँ, अपमान)

खतरनाक शारीरिक हिंसा

2) अत्यधिक भावनात्मक प्रतिक्रिया, जैसे:

लंबा गुस्सा और अलग-थलग रहना: कोई बच्चा कई दिनों तक कमरे से बाहर न आए और पूरी तरह दूरी बना ले

स्वयं को नुकसान पहुँचाना: तीव्र गुस्से में दूसरों के बजाय खुद को चोट पहुँचाना

3) बार-बार दोहराया जाने वाला, थकाने वाला सिलसिला

रोज़ाना या दिन में कई बार छोटी-छोटी बातों पर झगड़े

ये लड़ाइयाँ पूरे घर की परवरिश-प्रणाली को पंगु कर दें

माता-पिता स्वयं मानसिक और भावनात्मक थकान का शिकार हो जाएँ

निष्कर्ष और अंतिम मार्गदर्शन:

यदि ऊपर बताई गई निशानियाँ मौजूद हों, तो इसका अर्थ है कि बच्चों के झगड़े अब स्वाभाविक प्रतिस्पर्धा नहीं रहे, बल्कि एक गहरा भावनात्मक और संबंधपरक समस्या बन चुके हैं। ऐसे हालात में ज़रूरी है कि परिवार किसी विशेषज्ञ सलाहकार या बाल-मनोवैज्ञानिक से मदद ले।

एक विशेषज्ञ समस्या की जड़ तक पहुँचकर गुस्से पर नियंत्रण, बेहतर आपसी संबंध और घर में शांत वातावरण की बहाली के लिए प्रभावी और व्यावहारिक समाधान सुझा सकता है।

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